विचारों के सरोवर में छपाक

मस्तिष्क के सरोवर में
विचारों के पानी पर,
यूँ ही कभी बच्चे की तरह
अपने पूरे सामर्थ्य से
हाथ मारकर हिला डालना,
ढुलका देता है पानी कितना,
कितनी बूँदें उछाल देता है।
यद्यपि ऐसा करना
ज़िंदगी में कुछ जोड़ता नहीं,
परंतु कुछ पलों की यह अनुभूति —
हाथ मारकर किलकने का मज़ा —
अवश्य दे जाती है,
जो कैसे भी हो,
ज़िंदगी को बनाने वाली
कार्यों की कड़ियों की श्रृंखला को
मज़बूत अवश्य कर जाती है।

लेखिका: निशि भाटिया
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